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नोबेल और नाटक: जब ‘शांति’ भी हो गई सौदे की चीज़!

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संपादकीय साप्ताहिक विशेषांक


By ACGN 7647981711, 9303948009


हर हफ़्ते जन-जन के मन की बात – जनता का आईना, सच्चाई का हथियार – अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़ का साप्ताहिक विशेषांक

  ✍️कलम की धार ✍️

 अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़ का साप्ताहिक विशेषांक

“अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़” हमेशा जनता की पीड़ा और सच्चाई का दर्पण रहा है। हम दिखाते हैं सच का आईना – अछूते वे चित्र जिन्हें सत्ता और राजनीति का शोर अक्सर छुपा देता है। हमारी कलम लिखती है निष्पक्ष, निर्भीक और सच्ची खबरें, जो केवल सतही नहीं बल्कि सच की तह तक पहुँचती हैं। यही हमारी पहचान है और यही पत्रकारिता का धर्म।

आज जब समाज अनेक समस्याओं से जूझ रहा है, तब कलम की धार उन मुद्दों पर चोट करती है जिन्हें देखकर भी लोग चुप हैं।

“कलम की धार” में इस सप्ताह — दो व्यंग्य, एक सच्चाई!

ट्रंप के सपनों से लेकर मचाडो की मुस्कान तक  नोबेल शांति पुरस्कार की राजनीति पर तीखा व्यंग्य।

 जब शांति भी ‘पॉलिटिकल प्रोजेक्ट’ बन जाए!

कभी नोबेल शांति पुरस्कार को मानवता की सर्वोच्च पहचान माना जाता था जहाँ “संवेदना” का मूल्य सत्ता से बड़ा था। पर आज, जब “शांति” भी भू-राजनीति का सौदा बन गई है,

तो सवाल उठता है क्या नोबेल अब विवेक का नहीं, विज्ञापन का पुरस्कार है?

अमेरिका से लेकर वेनेजुएला तक, हर बार यह सम्मान राजनीति के रंग में रंगता जा रहा है।

इस सप्ताह “कलम की धार” में दो प्रख्यात व्यंग्यकार राजेंद्र शर्मा और विष्णु नागर नोबेल के इस “राजनैतिक नाटक” को अपनी कलम से यूं उधेड़ते हैं कि पाठक हंसी के साथ-साथ सोचने को मजबूर हो जाता है।

शांति का नोबेल : गुरु गुड़ रह गए, चेली शक्कर होए!

✍️ राजेंद्र शर्मा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)

गुरु गुड़ का गुड़ रह गया, चेली शक्कर हो गई, डोनाल्ड ट्रंप की हालत अब कुछ ऐसी ही है। नोबेल शांति पुरस्कार पाने की जो ललक उन्होंने अपनी दूसरी पारी में दिखाई, वह किसी प्रचार-प्रसार अभियान से कम न थी। हथियारों, बयानों और “डीलों” के महारथी ट्रंप जी ने तय कर लिया था “इस बार शांति का नोबेल मेरा।” दुनिया के हर कोने में युद्ध रुकवाने की मुहिम छेड़ दी, ट्वीट से लेकर टैरिफ तक सब लगा दिए। पर जब फैसला आया, तो नोबेल उनके हाथ से ऐसे फिसला जैसे मुट्ठी की रेत।

ट्रंप की मेहनत का नतीजा निकला उलटा नोबेल चला गया उनकी “राजनीतिक चेली” मरिया कोरिना मचाडो के हाथ, जिसे उन्होंने खुद लोकतंत्र का “टूल” बनाकर दुनिया में भेजा था। अब वही नोबेल लेकर ट्रंप को थैंक यू कह रही हैं। गुरु तो रह गया गुड़, चेली शक्कर हो गई यही तो राजनीति का शाश्वत व्यंग्य है!

कभी-कभी ट्रंप जी सोचते होंगे, काश नोबेल “युद्ध कला” के लिए भी होता, तो हर कार्यकाल में एक न एक तो अपने नाम पक्का होता। पर अफसोस  हथियार बनाने वाली कंपनी ने भी

“शांति पुरस्कार” शुरू कर दिया, और वो भी दूसरों को दे दिया! अब ट्रंप के पास बची है सिर्फ एक सांत्वना नोबेल न सही, नोबेल विजेता का गुरु कहलाने का सम्मान तो मिला! समझ क्या रखा है इन नोबेल शांति पुरस्कार वालों ने!

✍️विष्णु नागर (विष्णु नागर प्रख्यात साहित्यकार और जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

भारत-पाकिस्तान समेत सात युद्ध रुकवाने का दावा करने वाले डोनाल्ड ट्रंप आखिरकार फिर हार गए।लॉबिइंग, सिफारिशें, फोन कॉल्स  सब बेकार! नोबेल शांति पुरस्कार गया किसी और के नाम और वह भी वेनेजुएला की मरिया कोरिना मचाडो के।

सुबह-सुबह ट्रंप जी को जब यह खबर लगी होगी, तो “हे राम! ये क्या हो गया!” टाइप झटका तो लगा ही होगा।उन्होंने तो हाल ही में ग़ज़ा पट्टी के लिए बीस सूत्रीय शांति योजना बनाई थी, मोदी जी भी बधाई देने को तैयार बैठे थे। पर नोबेल वालों ने बधाई देने लायक काम ही नहीं किया सीधे खेल पलट दिया।

अब दिल्ली से लेकर वाशिंगटन तक मायूसी छाई रही।बधाई संदेशों के ड्राफ्ट धूल खाते रह गए। ट्रंप सोचते रह गए कि शायद “शांति” नहीं, “टैरिफ लगाने” के लिए कोई पुरस्कार होता तो वही उनके नाम जाता!

अगर ऐसा कोई पुरस्कार नहीं है, तो ट्रंप शायद जल्द ही अपना नया इनाम शुरू कर देंगे ‘नेतन्याहू स्पॉन्सर्ड शांति पुरस्कार!’ क्योंकि अब यही तो असली शांति है जहाँ युद्ध भी लाभ का साधन है और पुरस्कार भी प्रचार का।

संपादकीय टिप्पणी : जब व्यंग्य सच से भी आगे निकल जाए

प्रदीप मिश्रा, स्वतंत्र पत्रकार

नोबेल शांति पुरस्कार की राजनीति पर राजेंद्र शर्मा और विष्णु नागर  दोनों की व्यंग्यात्मक कलम हमें यह एहसास कराती है कि आज “पुरस्कार” भी सत्ता का उपकरण बन चुके हैं।

“शांति” का अर्थ अब युद्ध रोकना नहीं, बल्कि उसे अपने पक्ष में सही समय पर रोकने की कला बन गया है।

मीडिया से लेकर मंच तक, हर ओर दिखावा है जहाँ असली शांति को “प्रेस रिलीज़” में बदला जा रहा है।

यह व्यंग्य केवल ट्रंप या नोबेल की कहानी नहीं, बल्कि हमारे समय की राजनीति की आत्मा का आईना है जहाँ शांति बिकती है, युद्ध ब्रांड होता है, और पुरस्कार प्रचार बन जाता है।

कलम की धार – व्यंग्य, विचार और जनचेतना का मंच

प्रकाशक: अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़ संपादकीय टीम

संपादक: प्रदीप मिश्रा, स्वतंत्र पत्रकार

 

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