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सच की तह तक

SIR प्रक्रिया का सच: जब BLO सोता है, शासन मौन होता है और जनता चुप रहती है, तब लोकतंत्र मरने लगता है

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संपादकीय

अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़ का साप्ताहिक विशेषांक

हर हफ़्ते जनता की आवाज़ – सच्चाई का आईना, बदलाव का हथियार


By ACGN 7647981711, 9303948009


 ✍️ कलम की धार ✍️

अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़” हमेशा जनता की पीड़ा और सच्चाई का दर्पण रहा है। हम दिखाते हैं सच का आईना अछूते वे चित्र जिन्हें सत्ता और राजनीति का शोर अक्सर छुपा देता है। हमारी कलम लिखती है निष्पक्ष, निर्भीक और सच्ची खबरें, जो केवल सतही नहीं बल्कि सच की तह तक पहुँचती हैं। यही हमारी पहचान है और यही पत्रकारिता का धर्म।

जनता की पीड़ा, शासन तक सीधा संदेश हमारा संकल्प है कि जनहित के मुद्दे और जन सरोकारों की पीड़ा को अनसुना न होने दें। गांव की चौपाल से लेकर शहर की गलियों तक, आम जनता की समस्याओं को उठाकर शासन-प्रशासन तक पहुंचाना ही हमारी पत्रकारिता का उद्देश्य है।

आज का विषय : लोकतंत्र की सबसे खतरनाक नींद

आलेख : प्रदीप मिश्रा, स्वतंत्र पत्रकार

SIR प्रक्रिया के नाम पर सबसे बड़ा धोखा, सबसे बड़ा अपराध, सबसे बड़ा छल

लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना यह नहीं कि नेता भ्रष्ट हैं, यह भी नहीं कि व्यवस्था खोखली है; सबसे बड़ा सच यह है कि जनता गहरी नींद में सो रही है और शासन को यह पता है कि यह नींद कभी टूटेगी ही नहीं। यही वह घातक भरोसा है, जिसके दम पर सरकार आज SIR प्रक्रिया नाम की चमकदार पैकेजिंग बेच रही है, जबकि उसकी जड़ें दलदल में धंस चुकी हैं। मतदाता सूची लोकतंत्र की रीढ़,आज बदबू मारती उस नाली में बदल चुकी है, जिसे देखने की हिम्मत सरकार में नहीं, समझने की क्षमता BLO में नहीं, और सुधार की इच्छा जनता में नहीं।

शासन दावा कर रहा है कि SIR प्रक्रिया से मतदाता सूची “शुद्ध” होगी। BLO हर घर जाएगा। हर नाम की जांच होगी। मृतक हटेंगे, नए जुड़ेंगे, बाहर नौकरी वाले सही दर्ज होंगे। चुनाव निष्पक्ष होंगे। वाह! शासन का यह दावा उतना ही सुंदर है जितना नेता का चुनावी भाषण कागज पर चमकदार, वास्तविकता में बदबूदार।

जमीन पर सच्चाई यह है कि BLO घर नहीं जा रहे, घर में बैठे मोबाइल पर टिक लगा रहे हैं। कुछ BLO तो इतने “प्रोफेशनल” हो चुके हैं कि सड़क पर खड़े-खड़े 50 घर “वेरिफाई” कर देते हैं और शाम को गर्व से कहते हैं, “आज पूरा गांव निपटा दिया।” शासन इस डिजिटल जादू को “सम्पूर्ण सत्यापन” कहता है, जबकि असल में यह लोकतंत्र की हत्या का डिजिटल प्रमाण है, और यह काम कौन कर रहा है? आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जिन्हें बच्चों का वजन तक ठीक से नोट करवाने में मुश्किल होती है, शिक्षक जो खुद हाजिरी ऐप के सामने परेशान रहते हैं, उन्हें लोकतंत्र के सबसे संवेदनशील काम में झोंक दिया गया है। न प्रशिक्षण दिया, न निगरानी, न जवाबदेही। शासन को लगता है काम हो गया, BLO को लगता है काम निपट गया, पर लोकतंत्र का कलेजा कट गया।

मतदाता सूची आज राशन कार्ड से भी ज्यादा संदिग्ध दस्तावेज़ बन गई है।

जिंदा लोग गायब, मरे हुए लोग मौजूद, जो शहर छोड़ चुके, वे घर पर दिख रहे, जो पहली बार वोटर बनना चाह रहे, वे BLO की टालमटोल और CSC की लूट के बीच बह रहे।

और इस अराजकता के बीच “नाम खोजकर 50–100 में दे दूंगा” एक नया धंधा बन गया है। BLO का काम अब सिर्फ मोबाइल ऐप का टिक है, और शासन का विश्वास भी अब उसी टिक पर टिका है। यह “टिक-तंत्र” लोकतंत्र को खा रहा है।

सबसे बड़ा अपराध यह है कि लोकतंत्र की नींव उन हाथों में है जिन्हें इस काम से न प्रेम है, न रुचि है, न समझ है। BLO को घर-घर जाकर सत्यापन करना था, लेकिन वे पहुंचे नहीं। उन्हें मृतक का नाम हटाना था, पर वे जानते नहीं। उन्हें युवाओं को जोड़ना था, पर वे देखते नहीं। और जब धरातल पर मेहनत की जगह “अंदाजा”, “कयास”, “पड़ोसी की बात”, और “मोबाइल का टिक” तय करने लगे कि कौन जिंदा है, कौन मतदाता है तब मतदाता सूची क्या सुधरेगी, लोकतंत्र सड़ने लगेगा।

सरकार की सख्ती? कागजों में, फाइलों में, बैठकों में, वहीं जहां सख्ती हमेशा रहती है जमीन से हजार मील दूर, ऊपर से सब ठीक, नीचे सब बदहाल, न किसी BLO की वास्तविक जांच, न किसी सत्यापन का सबूत, न किसी अधिकारी की जवाबदेही, और सरकार खुश है कि चुनाव “मजबूत” हो रहे हैं।

सच यह है कि शासन इस गड़बड़ी से डरता नहीं, उसे इसका फायदा चाहिए, और जनता को इसका नुकसान समझ ही नहीं आता।

यही लोकतंत्र की सबसे खतरनाक साजिश है जो देश में नहीं, जनता के दिमाग में चल रही है, और विपक्ष? वह तो इस मुद्दे पर वैसे ही चुप है जैसे बिजली कटने पर रात, मतदाता सूची की लड़ाई विपक्ष की प्राथमिकता में कभी थी ही नहीं, उसे भी पता है कि गलत सूची कभी-कभी फायदा भी देती है, इसलिए विपक्ष का विरोध सिर्फ टीवी स्टूडियो तक सीमित है जमीन पर निभाने का साहस किसी में नहीं।

सत्ता की लापरवाही + विपक्ष की चुप्पी = लोकतंत्र की बर्बादी।

लेकिन सबसे बड़ा अपराधी कौन है? जनता हाँ, वही जनता जिसे अपने वोट पर गर्व होना चाहिए, वही वोट को सबसे हल्के में लेती है।

BLO घर नहीं आता, जनता चुप, नाम गलत, जनता चुप, नाम कट गया, जनता दो साल चुप और चुनाव के बाद जनता चिल्लाती है “गलत सरकार आ गई!” गलत सरकार इसलिए नहीं आती कि नेता गलत हैं, गलत सरकार इसलिए आती है कि मतदाता सूची गलत है,मतदाता सूची इसलिए गलत है कि सत्यापन गलत है, सत्यापन इसलिए गलत है कि जनता चुप है।, लोकतंत्र की नींव सत्ता नहीं बनाती, जनता की जागरूकता बनाती है, और जब जनता खुद अपने वोट की रक्षा नहीं करेगी, खुद नहीं पूछेगी  “मेरे घर सत्यापन हुआ?”, “मेरा नाम सही?”, “BLO आया?”, “सत्यापन पैसे पर क्यों?”, “पोर्टल साफ और जमीन गंदी क्यों?”  तब लोकतंत्र कागज पर चमकेगा और जमीन पर सड़ जाएगा।

आज SIR प्रक्रिया सिर्फ एक तकनीकी कार्य नहीं है, यह लोकतंत्र के चरित्र की परीक्षा है।और हम इस परीक्षा में बुरी तरह नाकाम हो रहे हैं।शासन की ढोंगी सख्ती, BLO की लापरवाही, विपक्ष की मौन सहमति, और जनता की घातक उदासीनता, इन सबने मिलकर मतदाता सूची को मजाक बना दिया है।

अगर जनता अब भी नहीं जागी, अब भी नहीं बोली, अब भी BLO से नहीं पूछा, अब भी शासन से जवाब नहीं मांगा, तो अगला चुनाव आपका नहीं होगा।आपका वोट शायद आप नहीं डालेंगे,पर आपका नाम जरूर इस्तेमाल कर लिया जाएगा।

याद रखिए

लोकतंत्र तब नहीं मरता जब नेता तानाशाह बनते हैं।लोकतंत्र तब मरता है जब जनता चुप रहती है, और आज जनता खतरनाक रूप से चुप है, जागिए, मतदाता सूची आपकी पहचान है। पहचान खो गई तो लोकतंत्र का अर्थ भी खो जाएगा।

 

यह लेख पूर्णतः विचार-आधारित है और इसमें व्यक्त सभी बातें केवल जागरूकता, विश्लेषण और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर चिंतन के उद्देश्य से लिखी गई हैं। इसमें किसी व्यक्ति, संस्था, विभाग, कर्मचारी या जनप्रतिनिधि पर कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष आरोप-प्रत्यारोप नहीं है। प्रस्तुत लेख केवल जनहित में जागरूकता बढ़ाने हेतु लिखा गया है।

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