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छत्तीसगढ़ : परंपरा, परिवर्तन और संघर्ष की धरती — कमजोर से सशक्त छत्तीसगढ़ की 25 वर्ष की यात्रा

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संपादकीय

अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़ का साप्ताहिक विशेषांक

हर हफ़्ते जनता की आवाज़ – सच्चाई का आईना, बदलाव का हथियार


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       ✍️ कलम की धार ✍️

“अंजोर छत्तीसगढ़ न्यूज़” हमेशा जनता की पीड़ा और सच्चाई का दर्पण रहा है। हम दिखाते हैं सच का आईना अछूते वे चित्र जिन्हें सत्ता और राजनीति का शोर अक्सर छुपा देता है। हमारी कलम लिखती है निष्पक्ष, निर्भीक और सच्ची खबरें, जो केवल सतही नहीं बल्कि सच की तह तक पहुँचती हैं। यही हमारी पहचान है और यही पत्रकारिता का धर्म।

जनता की पीड़ा, शासन तक सीधा संदेश हमारा संकल्प है कि जनहित के मुद्दे और जन सरोकारों की पीड़ा को अनसुना न होने दें। गांव की चौपाल से लेकर शहर की गलियों तक, आम जनता की समस्याओं को उठाकर शासन-प्रशासन तक पहुंचाना ही हमारी पत्रकारिता का उद्देश्य है।

आज का विषय : सशक्त छत्तीसगढ़ की 25 वर्ष की यात्रा

लेखक – प्रदीप मिश्रा, स्वतंत्र पत्रकार

छत्तीसगढ़ आज अपनी स्थापना की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है  यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि इतिहास, संघर्ष और उपलब्धियों से भरी रजत जयंती का पर्व है।

यह भूमि केवल खनिजों से नहीं, बल्कि संस्कारों, जनसंघर्षों और लोकभावनाओं से गढ़ी गई है।

1 नवंबर 2000 को जब यह राज्य अस्तित्व में आया, तब लोगों ने सपना देखा था  एक ऐसे छत्तीसगढ़ का, जो अपने संसाधनों, संस्कृति और जनता के बल पर आत्मनिर्भर बने। आज, पच्चीस साल बाद, यह यात्रा अपने भीतर गर्व, संघर्ष, और संभावनाओं की गाथा समेटे हुए है।

छत्तीसगढ़ का इतिहास और पहचान

छत्तीसगढ़ की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं। यह क्षेत्र दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। यहां से मिले अशोक के शिलालेख, शरभपुरी, सोमवंशी और कलचुरी वंश के अवशेष इस बात के साक्षी हैं कि यह क्षेत्र प्राचीन भारत की गौरवशाली सभ्यता का हिस्सा रहा है। संत गुरु घासीदास ने यहां सत्य, अहिंसा और समानता का संदेश दिया, वहीं कबीर, तुलसीदास और पंडवानी की परंपरा ने इस धरती को आत्मा दी। ‘छत्तीसगढ़’ नाम ही स्थानीय स्वशासन और लोकशक्ति का प्रतीक है  छत्तीस गढ़ों का प्रदेश, जहां हर गढ़ एक कहानी कहता है।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और संस्कार

छत्तीसगढ़ की पहचान उसकी लोकसंस्कृति से है। नाचा, पंथी, राऊत नाच, सुवा नृत्य, करमा, और पंडवानी यहां की लोककला की आत्मा हैं। बस्तर दशहरा, तीजन, हरेली, मातर पर्व और गौरा-गौरी पूजा जैसे उत्सव यहां के जनजीवन को जोड़ते हैं, चावल, कोदो-कुटकी, महुआ और तेंदूपत्ता यहां के जीवन का हिस्सा हैं। छत्तीसगढ़ की मिट्टी में जितना संगीत है, उतना ही श्रम भी यही उसे भारत का सबसे सजीव सांस्कृतिक प्रदेश बनाता है।

छत्तीसगढ़ के पर्यटन और प्राचीन धरोहर

छत्तीसगढ़ प्राकृतिक और ऐतिहासिक पर्यटन का खज़ाना है। चित्रकोट जलप्रपात, जिसे भारत का “नियाग्रा फॉल्स” कहा जाता है, दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। तीरथगढ़ जलप्रपात, कुटुमसर गुफा, बोरे बमलेश्वर मंदिर, डोंगरगढ़ का बमलेश्वरी धाम, सिरपुर का बौद्ध स्थल, मल्हार का पुरातात्त्विक अवशेष, मदकूद्वीप और भोरमदेव का खजुराहो जैसे स्थल इस राज्य की ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत को दर्शाते हैं। कोरबा, जशपुर, सरगुजा और बस्तर के जंगलों में पर्यटन और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

औद्योगिक विकास और ऊर्जा की राजधानी

छत्तीसगढ़ को देश की “ऊर्जा राजधानी” कहा जाता है।यहां एनटीपीसी, एसईसीएल, एनएमडीसी, बालको, जेएसपीएल, कोरबा थर्मल प्लांट, भू-गर्भीय कोयला खदानें जैसी संस्थाएं राज्य के आर्थिक ढांचे की रीढ़ हैं।बलौदाबाजार, रायगढ़, भिलाई और दुर्ग में इस्पात उद्योग, जबकि कोरबा और जांजगीर में बिजली उत्पादन उद्योग ने राज्य को औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित किया है।

हालांकि इस विकास के साथ पर्यावरणीय संकट भी जुड़ा, राखड़ डैम, जलप्रदूषण और जंगलों की कटाई ने कई इलाकों को प्रभावित किया है।

    सत्ता, संघर्ष और स्थिरता की खोज

राज्य गठन के बाद अजीत जोगी ने प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया, रमन सिंह ने बुनियादी विकास योजनाओं को गति दी, भूपेश बघेल ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और छत्तीसगढ़ी अस्मिता को केंद्र में लाया, और अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार सुशासन, पारदर्शिता, नक्सलमुक्त बस्तर और औद्योगिक संतुलन की दिशा में आगे बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ का राजनीतिक परिवेश परिपक्व हो रहा है, लेकिन अब भी चुनौती यही है  विकास की धारा समाज के हर वर्ग तक समान रूप से पहुंचे।

जंगल, जनजाति और पर्यावरण का संघर्ष

राज्य का लगभग 44 प्रतिशत भाग जंगलों से घिरा है।यहां के आदिवासी  गोंड, मुरिया, हल्बा, बैगा, अबुझमाड़िया, बिंझवार, कंवर, प्रकृति के सच्चे रक्षक हैं। लेकिन लगातार खनन, जंगल कटाई और विस्थापन ने उनकी जीवनशैली को खतरे में डाला है।

कोरबा, बस्तर और रायगढ़ क्षेत्रों में राखड़ प्रदूषण, नदी प्रदूषण और भूमिगत जल का ह्रास गंभीर चिंता का विषय है। जंगल कटे तो केवल हरियाली नहीं गई  एक पूरी संस्कृति, लोकगीत और परंपरा भी कमजोर हुई।

     क्या है छत्तीसगढ़ की समस्याएं?

औद्योगिक विस्तार से पर्यावरण प्रदूषण और जलस्रोतों का ह्रास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की असमान पहुंच, आदिवासी अंचलों में बेरोज़गारी और पलायन, खनन और परियोजनाओं से विस्थापन, नक्सलवाद का अवशेष प्रभाव, प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही की चुनौती

       क्या है छत्तीसगढ़ की खूबियां

भारत का सबसे स्वच्छ और हरित राज्य बनने की दिशा में अग्रसर, लोककला, हस्तशिल्प और जनसंस्कृति में अपार विविधता

देश की ऊर्जा और इस्पात उत्पादन में अग्रणी भूमिका, महिला स्वसहायता समूहों की सफलता गौठान मॉडल की मिसाल, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण में जनभागीदारी की पहल, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और समाज में आपसी समरसता

रजत जयंती वर्ष : आत्ममंथन और संकल्प

2025 का यह वर्ष छत्तीसगढ़ की रजत जयंती का वर्ष है। पच्चीस वर्षों की यह यात्रा केवल शासन की उपलब्धियों की नहीं, बल्कि जनता के परिश्रम की कहानी है।

आज जब पूरा राज्य विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहा है, तब यह भी ज़रूरी है कि हम अपने जंगल, जन और जल की रक्षा करें।

रजत जयंती का यह अवसर हमें याद दिलाता है कि विकास केवल सड़कों और उद्योगों से नहीं बल्कि संस्कृति, पर्यावरण और समानता से ही टिकाऊ होता है।

छत्तीसगढ़ आज एक चौराहे पर खड़ा है  जहां परंपरा और आधुनिकता, जंगल और उद्योग, लोकगीत और टेक्नोलॉजी एक साथ सांस ले रहे हैं।

यह राज्य कमजोर से सशक्त हुआ है, लेकिन यात्रा अभी अधूरी है। यदि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ अपने लोगों, पर्यावरण और संस्कृति के संतुलन को बनाए रख सके, तो यह प्रदेश न केवल भारत की ऊर्जा राजधानी रहेगा, बल्कि भारत की आत्मा का उज्ज्वल प्रतीक भी बनेगा।

प्रदीप मिश्रा
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