बालको के सौदे के 15 साल बाद भी लंबित दावे: सेवानिवृत्त कर्मचारी आर्थिक और मानवीय संकट में
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कोरबा छत्तीसगढ़
By ACGN 7647981711, 9303948009
कोरबा/बालकोनगर। बिलासपुर-कोरबा क्षेत्र की सबसे बड़ी औद्योगिक इकाइयों में से एक बालको (Bharat Aluminium Company Ltd.) की स्थापना 1965 में एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में हुई थी। यह भारत के प्राथमिक एल्युमीनियम उद्योग में अहम योगदान देने वाली कंपनी रही है। 2 मार्च 2001 को केंद्र सरकार ने अपनी 51% हिस्सेदारी का निजीकरण किया और कंपनी का नियंत्रण वेदांता समूह को सौंप दिया। इसके बाद कंपनी के मालिकाना ढांचे और प्रबंधन में बड़ा बदलाव आया।
विगत 24 वर्षों में बालको ने देश में उत्पादन और लाभ दोनों में उच्च स्तर हासिल किया, FY24 में समूह की एल्युमीनियम उत्पादन रिपोर्ट 2.37 मिलियन टन रही। लेकिन इन उपलब्धियों के बीच, कई सेवानिवृत्त कर्मचारी और उनके परिवार आज भी अपने बुनियादी आर्थिक हक पेंशन, बकाया वेतन, ग्रेच्युटी और अन्य भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ के अनुसार, 2001 के बाद कंपनी में वीआरएस, छंटनी और निजीकरण की प्रक्रिया के दौरान कई कर्मचारियों को जबरन वीआरएस या दबाव-पूर्वक सेवानिवृत्ति के विकल्प दिए गए। लेकिन शासन-प्रशासन और कंपनी के निर्देशों के बावजूद उनके भुगतान लंबित रहे।
वेदांता बालको प्रबंधन की कथित अमानवीय कार्रवाई
संघ का आरोप है कि हाल के वर्षों में प्रबंधन ने कुछ कर्मचारियों पर आवास खाली कराने का दबाव डालते हुए चिकित्सा और बुनियादी सुविधाएँ बंद कर दीं। इनमें बिजली-पानी कटौती, नल-सीवरेज लाइन बंद करना और चिकित्सा सुविधा रोकना शामिल है। कई वरिष्ठ कर्मचारी, जिन्होंने दशकों तक कंपनी की सेवा की, अब दीपावली पर घर में दीया जलाने की स्थिति में नहीं हैं।
प्रभावित कर्मचारियों का कहना है कि जब अधिकारियों ने मकान खाली करने का दबाव डाला, तो उन्हें मानवताविरोधी तरीके अपनाते हुए उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया। उनका कहना है कि यह कार्य अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान की सुरक्षा के प्रतिकूल है।
सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ की मुख्य मांगें
1. लंबित भुगतान का तत्काल निपटारा: वेतन, पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य बकाया राशि का शीघ्र भुगतान।
2. जबरन मकान खाली करने या सेवाएँ बंद करने पर रोक: बिजली, पानी, सीवेज जैसी बुनियादी सुविधाओं पर किसी भी तरह की अवैध कार्रवाई न हो।
3. प्रशासनिक स्तर पर स्वतंत्र जांच: जिला प्रशासन, श्रम विभाग और न्यायपालिका के सामने ऑडिट और सत्यापन।
4. मानवीय सहायता: प्रभावित परिवारों के लिए अस्थायी सहायता, जैसे चिकित्सा और बुनियादी सुविधाओं की बहाली।
संघ के पदाधिकारी कहते हैं “हमने कंपनी के लिए 20, 25, 40 साल की मेहनत की। अब हमारी उम्र और स्वास्थ्य इन दावों का इंतजार नहीं सह सकते। हमें सम्मान और हमारे हक चाहिए। जब तक पूरा भुगतान नहीं होता, हम अपने आवास में रहेंगे और किसी भी तरह के अमानवीय कदम का सामना करेंगे।”
तत्काल हस्तक्षेप के लिए संभावित संस्थाएँ
जिलाधिकारी/मिलीजुली प्रशासन: मानवीय राहत आदेश और कंपनी की किसी भी उकसाने वाली कार्रवाई पर रोक।
श्रम विभाग: लंबित दावों का ऑडिट और बाध्यकारी भुगतान सुनिश्चित करना।
राज्य मानवाधिकार आयोग/लोकायुक्त: अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होने पर नियमानुसार जांच।
मंत्रालय (खनन/उद्योग) और केंद्रीय प्राधिकरण: पारदर्शिता और निगरानी।
बालको की निजीकरण के बाद के 15 वर्षों के लंबित दावे, सेवानिवृत्त कर्मचारियों की आर्थिक, सामाजिक और मानवीय स्थिति को उजागर करते हैं। जबकि कंपनी मुनाफे और उत्पादन में उच्च स्तर पर है, पूर्व कर्मचारियों के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी सामाजिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी पर सवाल उठाती है।
संघ ने जिला प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्रीय मंत्रालय से अपील की है कि वे तत्काल और पारदर्शी जांच कराएँ, लंबित भुगतान सुनिश्चित करें और प्रभावित परिवारों की मानवीय सहायता बहाल करें।
शासन प्रशासन को इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कर उचित कार्यवाही करते हुए जांच कर न्याय करना चाहिए ताकि दोनों पक्षों के बीच संबंध बना रहे और किसी को परेशानी ना हो सके
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