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सच की तह तक

दूसरे चरण में भी कम पड़े वोट, किसके लिए साबित होंगे चोट?

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राजनीतिज्ञों के माथे पर चिंता की लकीरें

गर्म हवाओं से भी घरों से नही निकले अमीर मतदाता

छोटे राज्यों में अधिक तो बड़ों में कम हुआ मतदान


संपादकीय


मतदान के प्रति लोगों का रुझान न जाने क्यों कम हो रहा है। इसेभयंकर गर्मी का प्रकोप कहे, मतदान के प्रति कम होती रुचि कहे, सरकार के प्रति नाराजगी कहे या कुछ ओर? लेकिन यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नही है।
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में देश के 13 राज्यों की 88 सीटों पर कल मतदान संपन्न हो गया है। इस चरण में भी सबसे ज्यादा 78.63 प्रतिशत मतदान त्रिपुरा और सबसे कम 54.34 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में दर्ज किया गया। दूसरे चरण में कम हुए मतदान को लेकर राजनीतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तुलना में ज्यादातर मतदान केंद्रों पर मतदाताओं में रूझान कम देखने को मिला। इस चरण में 1202 उम्मीदवारों की सियासी किस्मत लिखी गई। चुनाव में दो पूर्व मुख्यमंत्री और छह केंद्रीय मंत्रियों के अलावा अनेक सियासी दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। इनका फैसला चार जून को होने वाली मतगणना के दौरान सामने आएगा। दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 सीटों पर मतदान संपन्न होने के बाद औसतन 60.96 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। इसमें असम में 70.78 प्रतिशत, बिहार में 54.91 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 73.05 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में 71.63 प्रतिशत, कर्नाटक में 67.00 प्रतिशत, केरल में 65.28 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 56.60 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 54.74 प्रतिशत, राजस्थान में 63.74 प्रतिशत, त्रिपुरा में 78.63 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 54.34 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 71.84 प्रतिशत तथा मणिपुर में 77.18 प्रतिशत वोट डाले जा सके। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 70.09 फीसदी मतदान हुआ था।
दूसरे चरण में केरल के वायनाड से राहुल गांधी, तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के शशि थरूर मैदान में हैं। शशि थरूर का मुकाबला केंद्रीय मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार राजीव चंद्रशेखर से है। मथुरा से हेमा मालिनी, राजनांदगांव से भूपेश बघेल, बेंगलुरु ग्रामीण से डीके सुरेश और बेंगलुरु दक्षिण से तेजस्वी सूर्या चुनाव लड़ रहे हैं। राजस्थान के कोटा सीट से लोकसभा स्पीकर ओम बिरला भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बिहार के पूर्णिया से पप्पू यादव बतौर निर्दलीय मैदान में हैं। मेरठ से भाजपा के उम्मीदवार अरुण गोविल चुनाव लड़ रहे हैं। असम की पांच सीटो पर 61, बिहार में पांच सीटो 50, छत्तीसगढ़ में तीन सीटों पर 41, जम्मू कश्मीर में एक सीट पर 22, कर्नाटक में 14 सीटों पर 247, केरल की 20 सीटों पर 194, मध्य प्रदेश की 06 सीटों पर 80, महाराष्ट्र की 08 सीटों पर 204, राजस्थान की 13 सीटों पर 152, त्रिपुरा की एक सीट पर 09, उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर 91 तथा पश्चिम बंगाल की तीन सीटों पर 47 प्रत्याशियों के भाग्य के लिए मतदाताओं ने वोटिंग की। इसके अलावा मणिपुर की एक सीट पर 04 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, जिसके दायरे में आने वाली 28 मे से 15 विधानसभा क्षेत्रों में पहले चरण में वोटिंग हो चुकी और बाकी 13 संवेदनशील विधानसभाओं में दूसरे चरण में मतदान कराया गया है।
वोट करने के लिए लोगों के घरों से बाहर नहीं निकलने को लेकर राजनीतिक दलों को साथ-साथ चुनाव आयोग की भी चिंता बढ़ा दी है। खासकर हिंदी भाषी राज्यों में तो मतदाता वोटिंग को लेकर जैसे नीरस हो गए हैं। इससे पहले 2014 और 2019 में अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने वोट किया था, लेकिन इस बार मतदाताओं में वो जोश देखने को नहीं मिल रहा है।
यूपी में दोनों चरणों में वोटिंग कम
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा की सीटें हैं, लेकिन वहां के वोटरों में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है। पहले चरण में जहां 57 प्रतिशत वोट पड़े, वहीं दूसरे चरण में महज 54.8 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जानकारों का मानना है कि किसके पक्ष में ज्यादा वोट गया है ये इस इस ट्रेंड से निकालना काफी मुश्किल है। चुनाव और राजनीतिक रूप से सजग कहे जाने वाले बिहार में भी इस बार मतदाता वोट को लेकर काफी नीरस दिख रहे हैं। पहले चरण में जहां 48 फीसदी लोगों ने वोट किया, वहीं दूसरे चरण में 54.9 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कई लोग बिहार में कम वोटिंग प्रतिशत को मौसम और पलायन से जोड़कर भी देख रहे हैं।
पूरे उत्तर भारत में इन दिनों मौसम का तापमान काफी बढ़ गया है। लू और गर्म हवाओं ने लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त किया हुआ है. लोगों के वोट करने को लेकर घर से बाहर नहीं निकलने की ये भी एक वजह बताई जा रही है। वहीं चुनाव में विपक्षी पार्टियों की कम सक्रियता से भी कम वोटिंग प्रतिशत को जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं आजकल के चुनाव में फिजिकल प्रचार की बजाय सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भी वोटिंग ट्रेंड को कम कर रहा है। मतदान प्रतिशत कम होने से कम मार्जिन वाली सीटों पर इसका सीधा असर पड़ता है. 2019 में 75 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था। ऐसे में परिणाम किसी भी तरफ झुक सकता है। कुछ जानकारों का कहना है कि कम मतदान से सत्ताधारी दलों को फायदा हो सकता है, क्योंकि लोगों की सोच होती है कि सरकार अच्छा काम कर रही है और वो बदलाव नहीं चाहते. इसीलिए वो वोट के लिए घर से बाहर नहीं निकलते।
पिछले 12 में से 5 चुनावों में वोटिंग प्रतिशत कम हुए हैं और इनमें से चार बार सरकार बदली है। 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत कम हुआ और जनता पार्टी को हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई। वहीं 1989 में मत प्रतिशत गिरने से कांग्रेस की सरकार चली गयी। केंद्र में बीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। 1991 में भी मतदान में गिरावट के बाद केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई। हालांकि 1999 में वोटिंग प्रतिशत में गिरावट के बाद भी सत्ता नहीं बदली। वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला।

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