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नागरामुडा गांव में जंगल कटाई के खिलाफ 47 दिनों से जारी है ग्रामीणों का आंदोलन, सरकार से परियोजना रद्द करने की मांग

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रायगढ़ छत्तीसगढ़


By ACGN 7647981711


रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के नागरामुडा गांव के ग्रामीण पिछले 47 दिनों से जंगल कटाई के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। उनका आरोप है कि क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है और यहां पेसा कानून लागू है, जिसके बावजूद ग्राम सभा की सहमति के बिना जंगल कटाई की अनुमति दी गई है।

तमनार तहसील के गारे पेलमा IV/I कोयला उत्खनन परियोजना के तहत 91.179 हेक्टेयर वन भूमि को मेसर्स जिंदल पावर लिमिटेड को सौंपा गया है, जिसके कारण 19,738 पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है। 27 नवंबर 2024 को जब इस कटाई की शुरुआत हुई, तब से ही गांव के लोग जंगल में डटे हुए हैं और इसकी रक्षा कर रहे हैं।

ग्रामीणों ने अनुविभागीय अधिकारी और जिला कलेक्टर को लिखित शिकायत देकर मामले की जांच और कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इसके बाद ग्रामीणों ने हाईकोर्ट बिलासपुर में याचिका दाखिल की है। ग्रामीणों का कहना है कि अब तक दो सुनवाई हो चुकी हैं, लेकिन शासन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।

ग्राम सभा जांजगीर पंचायत, जिसमें नागरामुडा गांव शामिल है, ने 2018 में इस वन भूमि को न देने का प्रस्ताव पारित किया था। इसके अलावा, तमनार जनपद पंचायत ने 23 सितंबर 2023 को आयोजित सामान्य सभा में भी इस वन क्षेत्र को न देने का प्रस्ताव पारित किया था।

नागरामुडा गांव से महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित यह जंगल 50,000 से अधिक पेड़ों का घर है, जिनमें सागौन, सराई, तेंदू, मौहा, साजा और बांस जैसे पेड़ शामिल हैं। यह जंगल केवल शुद्ध ऑक्सीजन का स्रोत नहीं है, बल्कि आसपास के ग्रामीणों का जीवन-यापन भी इस पर निर्भर है। इसी जंगल में देवी-देवताओं के पवित्र स्थान भी स्थित हैं, जो ग्रामीणों की आस्था का केंद्र हैं।

इस जंगल में भालू, तेंदुआ, लकड़बग्घा और कई अन्य जंगली जानवर पाए जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जंगल कटने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ेगा, शुद्ध ऑक्सीजन की कमी होगी और जंगली जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।

इस क्षेत्र में करीब 50 भूमिहीन परिवारों का भविष्य भी खतरे में है। ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार ने पुनर्वास और पुनर्योजन की कोई योजना नहीं बनाई है। यदि खनन कार्य शुरू होता है, तो इन परिवारों की आजीविका पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मरकाम ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारें संविधान और ग्राम सभा को नजरअंदाज कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचा रही हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर से रायगढ़ तक लोग जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”

ग्रामीणों ने सरकार से अपील की है कि इस परियोजना को तत्काल रद्द किया जाए और जंगलों को संरक्षित किया जाए। उनका कहना है कि जंगल की कटाई न केवल पर्यावरणीय नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि उनकी परंपरा, आस्था और आजीविका को भी नष्ट कर देगी।

ग्रामीणों का यह संघर्ष न केवल पर्यावरण बचाने का प्रयास है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और जीवन को संरक्षित रखने की एक जंग भी है।

 

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