बस्तर की पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट: एक पत्रकार की हत्या या लोकतंत्र की मृत्यु?
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
सिर पर 15 फ्रैक्चर, दिल फटा हुआ, 5 पसलियां टूटीं: यह सिर्फ एक पत्रकार का पोस्टमॉर्टेम नहीं, बस्तर की त्रासदी की रिपोर्ट है।
आलेख – बादल सरोज
बस्तर के युवा और निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या ने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया है।
उनकी पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट से जो खुलासा हुआ, वह किसी की रूह कंपा देने के लिए काफी है। उनके सिर पर 15 फ्रैक्चर थे, लीवर के चार टुकड़े हो चुके थे, दिल फट चुका था, और उनकी पांच पसलियां, कॉलर बोन और गर्दन टूट चुकी थी। उनका शरीर हर तरफ से चोटों और गहरे जख्मों से भरा हुआ था। पोस्टमॉर्टेम करने वाले डॉक्टरों ने स्वीकार किया कि अपने पूरे करियर में उन्होंने इतनी निर्ममता से की गई हत्या कभी नहीं देखी।
मुकेश चंद्राकर, जो बस्तर के बीजापुर जिले में सक्रिय थे, अपने यूट्यूब चैनल ‘बस्तर जंक्शन’ के माध्यम से सच और निडर पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे। उनके चैनल के लगभग पौने दो लाख सब्सक्राइबर्स थे। यह चैनल उन खबरों का स्रोत था, जिनकी गूंज देश के बड़े शहरों तक सुनाई देती थी। मुकेश अकेले इस चैनल के संपादक, रिपोर्टर, कैमरामैन, एडिटर और डिजाइनर थे।
एक सचेत पत्रकार की मौत और साजिश की कहानी
मुकेश चंद्राकर का कद उनके बेबाक और तथ्यपरक पत्रकारिता के कारण बढ़ता गया। उन्होंने बस्तर की सच्चाई, माओवादियों और प्रशासन के बीच पिसते आदिवासियों के दर्द, और सत्ता के भ्रष्टाचार को उजागर किया।
उनकी मौत 1 जनवरी को हुई। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर, जो एक समय बावर्ची का काम करता था और अब 132 करोड़ का मालिक है, ने उनकी हत्या कर दी। मुकेश की लाश उसके फार्महाउस के सेप्टिक टैंक में पाई गई।
मुकेश ने हाल ही में एक ऐसी रिपोर्ट कवर की थी, जिसमें सुरेश चंद्राकर को 56 करोड़ की सड़क के ठेके को 120 करोड़ में तब्दील करवाने और फिर बिना सड़क बनाए 100 करोड़ का भुगतान ले लेने का मामला उजागर किया गया था। इसके पहले भी उन्होंने इसी ठेकेदार की एक शादी पर रिपोर्ट की थी, जिसमें हेलिकॉप्टर की एंट्री ने बस्तर के गरीबों के जीवन और अमीरों के ऐशोआराम की खाई को रेखांकित किया था।
एक सवाल जो सबको झकझोरता है
मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या और उनके शरीर की स्थिति केवल एक पत्रकार की मौत नहीं है। यह बस्तर की लोकतांत्रिक और मानवीय हत्या का प्रतीक है।
यहां हर दो-तीन किलोमीटर पर सीआरपीएफ के कैंप, पुलिस छावनियां और अडानी-अंबानी के मुनाफे के लिए बिछाई जा रही सड़कों का जाल है। दूसरी ओर, आदिवासियों के पास न स्कूल हैं, न अस्पताल। मुकेश जैसे पत्रकार जब इस सच को उजागर करते हैं, तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है।
बस्तर: एक मरघट में तब्दील होता लोकतंत्र
बस्तर की स्थिति पर नजर डालें तो यह क्षेत्र एक ऐसे जंक्शन में बदल चुका है, जहां कानून, मानवता और संविधान से जुड़ी पटरियां उखाड़ दी गई हैं। यहां सिर्फ एक ही लाइन चालू है – पूंजीपतियों की। माओवाद और प्रशासन की दोहरी हिंसा के बीच पिसते आदिवासी अब मरने या विस्थापित होने के लिए मजबूर हैं।
मुकेश चंद्राकर की हत्या और उसके बाद का प्रशासनिक रवैया यह दिखाता है कि सत्ता और भ्रष्टाचार कितने गहरे जुड़े हुए हैं। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर न केवल पुलिस सुरक्षा प्राप्त कर रहा है, बल्कि उसे राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला हुआ है।
तीन घटनाएं, जो बस्तर की त्रासदी को उजागर करती हैं
1. सिलगेर आंदोलन:
2021 में बीजापुर और सुकमा के बीच 20 हजार आदिवासी शांतिपूर्ण धरने पर बैठे थे। उनकी मांग थी कि सीआरपीएफ कैंप की जगह स्कूल और अस्पताल बनाए जाएं। लेकिन उन्हें गोलियों से जवाब दिया गया।
2. सारकेगुड़ा हत्याकांड:
2012 में सुरक्षाबलों ने 17 निर्दोष आदिवासियों को माओवादी बताकर मार डाला। बाद में जांच में यह साबित हुआ कि वे सभी निर्दोष थे।
3. एडसमेटा हत्याकांड:
2013 में सुरक्षाबलों ने आठ आदिवासियों को माओवादी समझकर मार डाला। इनमें चार नाबालिग थे।
मुकेश चंद्राकर की मौत हमें बताती है कि बस्तर सिर्फ एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि लोकतंत्र के खात्मे की प्रयोगशाला बन चुका है। उनकी मौत केवल एक पत्रकार की हत्या नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की यातना का प्रतीक है।
यह लेख उन सभी से सवाल करता है, जो लोकतंत्र, मानवता और न्याय की परवाह करते हैं – क्या बस्तर को इस तरह मरने दिया जाएगा, या हम इसे बचाने के लिए खड़े होंगे?
*(लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)*
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space