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धान की खुशबू के संग सुआ के सुर, “सुआ के सुरों में सजी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक छटा”

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विशेष लेख (संपादकीय)

लेख प्रदीप मिश्रा 7647981711

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत सुआ नृत्य

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का एक अनुपम प्रतीक सुआ नृत्य, ग्रामीण जीवन के उत्साह और परंपराओं की अनमोल धरोहर है। यह नृत्य मुख्य रूप से धान कटाई के कार्य के पूरा होने के बाद, विशेषकर पूस माह में प्रारंभ होता है। इस समय गांव-गांव की महिलाएं और युवतियां पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर घर-घर जाकर सुआ नृत्य का प्रदर्शन करती हैं। यह दृश्य न केवल गांवों की मिट्टी से जुड़ी खुशबू को बिखेरता है, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा को भी जीवंत कर देता है।

“सुआ” अर्थात तोता, इस नृत्य का प्रतीक है, जो प्रेम, सौहार्द्र और संवाद का वाहक माना जाता है। महिलाएं मिट्टी या लकड़ी से बनाए गए तोते को बीच में रखकर गोल घेरा बनाती हैं और लोकगीतों की धुन पर नृत्य करती हैं। इन गीतों में धान की कटाई, प्रकृति की सुंदरता, ग्रामीण जीवन के संघर्ष और खुशियों का भावपूर्ण वर्णन होता है। गीतों की लय और ताल इतनी मधुर होती है कि हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
धान कटाई के बाद का समय ग्रामीण जीवन में उत्सव का प्रतीक होता है। यह नृत्य इसी उल्लास को अभिव्यक्त करता है। महिलाएं और युवतियां पारंपरिक परिधान, जैसे रंगीन साड़ियां, गहने और चूड़ियां पहनकर नृत्य करती हैं। उनकी सजावट और नृत्य की सुंदरता गांवों में एक अद्भुत समां बांध देती है। इस दौरान वे हर घर जाकर नृत्य प्रस्तुत करती हैं और अपने गीतों के माध्यम से शुभकामनाएं देती हैं।
छत्तीसगढ़ के लगभग सभी गांवों में यह नृत्य देखा जा सकता है। सुआ नृत्य केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि ग्रामीण समाज की एकता और सामूहिकता का प्रतीक है। धान की फसल से जुड़ी इस परंपरा का उद्देश्य न केवल मनोरंजन है, बल्कि इसके जरिए ग्रामीण महिलाएं अपनी भावनाओं और रचनात्मकता को अभिव्यक्त करती हैं।
पूस माह के दौरान सुआ नृत्य की गूंज गांव की गलियों से लेकर चौपाल तक सुनाई देती है। यह नृत्य ग्रामीण जीवन की खुशहाली, प्रकृति के प्रति आभार और सामूहिकता का संदेश देता है। महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों में छत्तीसगढ़ी भाषा की मिठास और परंपराओं की गहराई झलकती है।

इस नृत्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो धान के खेतों की हरियाली और कटाई के बाद की खुशबू ने गीत और नृत्य का रूप ले लिया हो। कोरबा समेत छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में इस नृत्य का प्रदर्शन बड़े उत्साह और उमंग के साथ किया जाता है। ग्रामीण जीवन के इस उत्सव में नृत्य और संगीत के माध्यम से हर घर में आनंद और शुभकामनाएं पहुंचाई जाती हैं।

सुआ नृत्य न केवल छत्तीसगढ़ की परंपरा को संजोकर रखता है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहां वे अपनी सामूहिकता और सांस्कृतिक जड़ों को उजागर कर सकती हैं। इस नृत्य की गूंज हर साल नई ऊर्जा और उमंग के साथ छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति को जीवंत बनाए रखती है।

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