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सच की तह तक

फटी बोरियों और कटी उम्मीदों के बीच धान खरीदी का सच: उठाव में देरी और प्रशासन की तेजी पर सवाल

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कोरबा छत्तीसगढ़


By ACGN 7647981711


कोरबा, 21 दिसंबर 2024: धान खरीदी की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने का दावा कर रहे प्रशासन की हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। जिले के 65 धान उपार्जन केंद्रों पर जहां 99,362.24 मीट्रिक टन धान खरीदी का रिकॉर्ड दर्ज किया गया है और 41,560.84 मीट्रिक टन धान का उठाव हो चुका है, वहीं जमीनी स्तर पर किसानों और समितियों को फटी बोरियों, रकबे में कटौती और उठाव में देरी जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

फटी बोरियों में उम्मीदों का गिरना


धान खरीदी केंद्रों पर बोरियों की गुणवत्ता किसानों और समितियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। फटी बोरियों के कारण धान का नुकसान हो रहा है,

जिससे किसानों और प्रबंधकों को अतिरिक्त श्रम और आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। एक उपार्जन केंद्र पर भेजी गई 5000 बोरियों में से 3000 बोरियां खराब निकलीं, जिनका उपयोग धान संग्रहण के लिए करना मुश्किल हो गया। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब प्रशासन द्वारा इसे अनदेखा किया जाता है।

रकबे में कटौती से फूटा किसानों का गुस्सा
किसानों का कहना है कि उनके रकबे में बिना किसी ठोस कारण के कटौती की गई है, जबकि उनकी फसल का उत्पादन इस बार भी पहले जैसा ही रहा। प्रशासन इसे कंप्यूटर में हुई तकनीकी खामी बता रहा है, लेकिन इस खामी को सुधारने की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि किसानों के धैर्य का बांध टूट रहा है। रकबे में कटौती के चलते कई किसानों को उनकी फसल का पूरा मूल्य नहीं मिल पा रहा, और वे तहसील कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

उठाव में देरी से बिगड़ रही तस्वीर


उपार्जन केंद्रों पर धान का उठाव समय पर नहीं होने के कारण समस्याएं और बढ़ रही हैं। धान रखने के लिए जगह कम पड़ रही है, और किसानों को केंद्रों पर धान खाली करने में मुश्किल हो रही है।

धान का एक बड़ा हिस्सा जमीन पर गिरकर बर्बाद हो रहा है, लेकिन इस नुकसान की जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं है। केंद्र प्रबंधकों का कहना है कि उठाव में देरी के कारण उनका काम बाधित हो रहा है और किसानों को मानसिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

वही एक ओर मौसम का रुख भी बिगड़ता नजर आ रहा है जिससे धान का उठाव में देर होने से समितियों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है

प्रशासन की सख्ती या खोखले दावे?


एसडीएम द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीन लेकर केंद्रों का निरीक्षण करना और धान खरीदी प्रक्रिया में गड़बड़ियों को रोकने का प्रयास अत्यंत सराहनीय है। लेकिन यह प्रयास फटी बोरियों और उठाव में देरी जैसी वास्तविक समस्याओं को हल करने में नाकाफी साबित हो रहा है। प्रशासन दावा कर रहा है कि कोरबा जिला धान उठाव में प्रदेश में पहले स्थान पर है और बाकी बचे धान का शीघ्रता से उठाव पूरा कर लिया जाएगा।

लेकिन सवाल उठता है कि यदि सब कुछ इतनी सुचारू रूप से हो रहा है तो फिर किसान और समितियां परेशान क्यों हैं?

धान खरीदी के दो चेहरे
एक ओर सरकारी आंकड़े धान खरीदी प्रक्रिया को सफल और सुचारू बता रहे हैं, तो दूसरी ओर जमीनी सच्चाई इसके विपरीत नजर आती है। फटी बोरियों में बर्बाद होता धान, रकबे में कटौती के कारण अधूरी उम्मीदें और उठाव में देरी से बिगड़ती तस्वीर किसानों की पीड़ा को और गहरा कर रही है।

किसानों का कहना है कि प्रशासन को केवल आंकड़ों की दौड़ में आगे रहने के बजाय उनकी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। अगर इन मुद्दों को जल्द सुलझाया नहीं गया, तो धान खरीदी प्रक्रिया किसानों के लिए राहत के बजाय एक नई समस्या बन जाएगी। “धान के ढेरों में उम्मीदें दब गई हैं,” यह कहते हुए किसान बस प्रशासन से अपने वादों को निभाने की गुहार लगा रहे हैं।

अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन किसानों के इस दर्द को महसूस कर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएगा, या फिर यह कहानी भी धान खरीदी के ढेर में दफन हो जाएगी?

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