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सच की तह तक

“मुफ्त योजनाओं की चकाचौंध में छिपा सच: सत्ता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के साए में पिसता मध्यम वर्ग”

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साप्ताहिक विशेषांक “कलम की धार”

“मध्यम वर्ग: न कोई सहारा, न कोई आवाज”


विशेष लेख – प्रदीप मिश्रा, संपादक


जब देश की राजनीति मुफ्त योजनाओं के प्रचार और सत्ता के खेल में उलझी हुई है, तब मध्यम वर्ग का संघर्ष हर रोज गहराता जा रहा है। मुफ्त राशन, बिजली, स्वास्थ्य सेवाओं की झड़ी ने गरीबों के कल्याण का झूठा सपना दिखाया है, लेकिन इनका वास्तविक बोझ मध्यम वर्गीय परिवारों की जेब पर पड़ रहा है। इन योजनाओं के संचालन में व्याप्त भ्रष्टाचार, नेताओं के चमचों की दादागिरी, और जातिवाद की राजनीति ने मध्यम वर्ग को हाशिये पर धकेल दिया है।

मध्यम वर्ग: लगातार बढ़ती महंगाई की चपेट में

खाने-पीने की चीजों से लेकर बिजली, गैस, और स्वास्थ्य सेवाओं तक, हर चीज की बढ़ती कीमतें मध्यम वर्ग को झकझोर रही हैं। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें हर उत्पाद और सेवा को महंगा कर रही हैं, और इसका सीधा असर उन परिवारों पर पड़ रहा है, जो पहले से ही सीमित आय में गुजारा कर रहे हैं।

सरकार द्वारा लागू किए गए करों और आर्थिक दबाव का बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग पर आता है। मुफ्त योजनाओं का भारी खर्च इन्हीं परिवारों से वसूला जाता है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ उन्हें कभी नहीं मिलता।

मुफ्त योजनाओं का भ्रम और भ्रष्टाचार का जाल

सरकारें चुनाव जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं का सहारा लेती हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचता ही नहीं। राजनीतिक दलों के चमचे और बिचौलिए इन योजनाओं का दुरुपयोग करते हैं। वे गरीबों का हक छीनकर खुद की जेब भरते हैं, जबकि मध्यम वर्ग इन योजनाओं से पूरी तरह अछूता रह जाता है।

मुफ्त योजनाओं के संचालन में व्याप्त भ्रष्टाचार ने हालात और भी बदतर कर दिए हैं। राशन, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी योजनाओं में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि पात्र व्यक्ति अपने अधिकारों से वंचित रह जाता है।

जातिवाद और राजनीति का गहरा साया

जातिवाद का बढ़ता प्रभाव समाज को तोड़ने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के समान वितरण को भी प्रभावित कर रहा है। नेता अपने राजनीतिक हित साधने के लिए जातिगत राजनीति का सहारा लेते हैं। इससे न केवल समाज में तनाव बढ़ रहा है, बल्कि विकास की राह भी बाधित हो रही है।

जातिगत आधार पर योजनाओं का वितरण मध्यम वर्ग के लिए और अधिक समस्याएं पैदा कर रहा है। जो व्यक्ति कड़ी मेहनत करके अपना जीवन यापन करता है, वह जातिगत आरक्षण और अन्य नीतियों के चलते पीछे रह जाता है।

प्रशासन की चुप्पी: मजबूरी या मिलीभगत?

नेताओं के चमचे और उनके सिपहसालार हर योजना को अपने निजी लाभ का साधन बना चुके हैं। प्रशासन, जो इन पर कार्रवाई करने का जिम्मेदार है, अक्सर मौन रहता है। यह चुप्पी या तो राजनीतिक दबाव का परिणाम है, या फिर भ्रष्टाचार में मिलीभगत का संकेत।

प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही ने भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को और अधिक बढ़ावा दिया है। इससे मध्यम वर्ग को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक संघर्ष करना पड़ता है।

मध्यम वर्ग: न कोई सहारा, न कोई आवाज

मध्यम वर्ग, जो न तो गरीबों की तरह योजनाओं का लाभ ले सकता है, और न ही अमीरों की तरह अपनी समस्याओं का समाधान खरीद सकता है, पूरी तरह से हाशिये पर है। नीतियां अमीर और गरीब के बीच बंटकर रह गई हैं, और इस वर्ग की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी उपेक्षा ने मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। निजी स्कूलों और अस्पतालों की महंगी सेवाएं इन्हें भारी आर्थिक बोझ तले दबा रही हैं।

क्या है समाधान?

1. भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई: सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई करना आवश्यक है।

2. मध्यम वर्ग पर ध्यान: मध्यम वर्ग के लिए विशेष योजनाएं और राहत पैकेज लागू किए जाने चाहिए।

3. जातिवाद का अंत: योजनाओं और नीतियों में जातिवाद को खत्म कर समान अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

4. प्रशासनिक सुधार: प्रशासनिक तंत्र को स्वच्छ और स्वतंत्र बनाया जाए ताकि वह नेताओं के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके।

“सत्ता, जातिवाद और मुफ्त योजनाओं के जाल में फंसा मध्यम वर्ग”

“महंगाई की मार और मुफ्त का भार,
मध्यम वर्ग को किसने दिया सहारा?
भ्रष्टाचार और जातिवाद का खेल,
सपनों को तोड़ता हर दिन का मेल।”

यह शायरी उस दर्द को बयान करती है, जिसे मध्यम वर्ग रोजाना झेल रहा है। सत्ता, जातिवाद और मुफ्त योजनाओं के छलावे ने मध्यम वर्ग को उस मोड़ पर खड़ा कर दिया है, जहां न उनके संघर्ष की सुनवाई है और न ही उनके दर्द का समाधान।

मध्यम वर्ग को अनदेखा करना केवल एक वर्ग को कमजोर करना नहीं, बल्कि पूरे देश की प्रगति को रोकने जैसा है। सरकार को चाहिए कि वह मुफ्त योजनाओं के आडंबर से बाहर निकले और ऐसी नीतियां बनाए, जो वास्तविक रूप से सभी वर्गों को लाभ पहुंचा सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मध्यम वर्ग की समस्याएं एक बड़ा राजनीतिक और आर्थिक संकट पैदा कर सकती हैं।

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