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हसदेव अरण्य बचाने की पुकार: कोरबा में गूंजा जन आंदोलन, “जल-जंगल-जमीन बचाने निकली पदयात्रा: जब तक न्याय नहीं, तब तक संघर्ष जारी”

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कोरबा छत्तीसगढ़


By Pradeep Mishra 7647981711


“हसदेव बचाओ पदयात्रा: 

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य और हसदेव नदी को बचाने के लिए निकली “हसदेव बचाओ पदयात्रा” आज सामाजिक कार्यकर्ता राधेश्याम शर्मा के नेतृत्व में कोरबा में प्रवेश कर चुकी है। यह पदयात्रा न केवल पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा का आंदोलन है, बल्कि न्याय और अधिकारों के लिए उठाई गई एक मजबूत आवाज है। 24 नवंबर 2024 को बिलासपुर के नेहरू चौक से प्रारंभ हुई यह यात्रा अब तक सैकड़ों गांवों और शहरों से गुजर चुकी है।

इस पदयात्रा का उद्देश्य हसदेव अरण्य के जंगलों और हसदेव नदी को कोयला खनन और औद्योगिक विकास के नाम पर बर्बाद होने से बचाना है। यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के लाखों लोगों की आजीविका, पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पदयात्रा का मार्ग और उद्देश्य

 

यह ऐतिहासिक पदयात्रा 24 नवंबर को बिलासपुर से शुरू होकर चिल्हाटी, जयरामनगर, अकलतरा, जांजगीर-चांपा, खरोरा, पंतोरा, और कोरबा होते हुए 8 दिसंबर को हरिहरपुर में महासम्मेलन के साथ समाप्त होगी। हर पड़ाव पर जनसभाओं और संवाद कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को जल, जंगल, और जमीन के महत्व के प्रति जागरूक किया जा रहा है।

आज सुबह पदयात्रा खमहरिया से प्रारंभ होकर कोरबा के सर्वमंगला मंदिर, ट्रांसपोर्ट नगर, और सीएसईबी चौक होते हुए शहर के प्रमुख स्थलों पर पहुंची। जनता ने उत्साहपूर्वक इस पदयात्रा का स्वागत किया और बड़ी संख्या में इसमें भाग लिया।

संविधान विसर्जन का संकल्प: न्याय के लिए संघर्ष का अगला कदम

पदयात्रा में शामिल रायगढ़ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता राधेश्याम शर्मा ने इस यात्रा को न्याय और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा,
“यदि सरकार और न्यायालय ने हमारी बात नहीं सुनी, और हमें न्याय नहीं मिला तो हम देश के संविधान का अरपा नदी में विसर्जन करेंगे।”

यह संकल्प एक प्रतीकात्मक विरोध है, जो यह दर्शाता है कि अगर संविधान की मूल भावना—जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अधिकारों का संरक्षण—का पालन नहीं किया जाएगा, तो इसका कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।

हसदेव अरण्य का संकट: पर्यावरण और मानवता पर खतरा

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ का “फेफड़ा” है। यह न केवल जैव विविधता से समृद्ध है, बल्कि यहां के हजारों आदिवासी समुदायों और किसानों की आजीविका का आधार भी है। लेकिन खनन परियोजनाओं और वनों की कटाई ने इस क्षेत्र को संकट में डाल दिया है।
सरकार द्वारा “परसा ईस्ट केते बासेन” (PEKB) कोयला खदान के लिए वन क्षेत्र की मंजूरी ने स्थानीय लोगों के जीवन और पर्यावरणीय संतुलन को गहरा आघात पहुंचाया है।

हसदेव अरण्य को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासी समुदाय पिछले 12 वर्षों से संघर्ष कर रहा है। उन्होंने 970 दिनों से अधिक समय तक धरना और प्रदर्शन किए हैं। पुलिस की बर्बरता, लाठीचार्ज, और सरकारी उपेक्षा के बावजूद यह संघर्ष आज भी जारी है।

8 दिसंबर को हरिहरपुर में महासम्मेलन: आंदोलन का चरम

8 दिसंबर को हरिहरपुर में एक विशाल किसान और आदिवासी महासम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। इसमें छत्तीसगढ़ और देशभर से लाखों लोग शामिल होंगे। सम्मेलन का उद्देश्य हसदेव अरण्य के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाना और सरकार पर दबाव बनाना है।

जनता से अपील: इस संघर्ष में भाग लें

कार्यकर्ताओं ने कोरबा की जनता से अपील की है कि वे इस पदयात्रा और महासम्मेलन में अधिक से अधिक संख्या में शामिल हों।
“यह आंदोलन केवल जंगल और नदी बचाने का नहीं है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा का प्रयास है।”

“हसदेव की धरा पुकार रही,
हर कण में जीवन साकार रही।
आओ मिलकर इसे बचाएं,
प्रकृति के गीत यहां हर सांस गा रही।”

न्याय और पर्यावरण की रक्षा का संघर्ष

“हसदेव बचाओ पदयात्रा” केवल पर्यावरणीय संरक्षण का आंदोलन नहीं है, बल्कि यह न्याय और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का प्रतीक भी है। यदि आज हसदेव अरण्य को नहीं बचाया गया,  तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा।
यह आंदोलन हमें सिखाता है कि संगठित होकर संघर्ष करना और अपनी आवाज उठाना कितना महत्वपूर्ण है। आइए, इस संघर्ष में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और हसदेव को बचाने के लिए एकजुट हों।

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