*बदलाव का तूफान*
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आपकी कलम से साप्ताहिक आलोचनात्मक लेख “कलम की धार”
(श्रीलंका के चुनाव नतीजों पर बादल सरोज की टिप्पणी)*
इस टिप्पणी के साथ दिए गये ग्राफ़िक्स श्रीलंका के नक्शे पर वहाँ की संसद के लिए हुए 3 चुनावों के नतीजों के आधार पर हुए बदलाव को दर्ज करते हैँ।
🔴 1994 में जो वाम शब्दशः हाशिये पर था, 2015 में हाशिये से भी बाहर हो गया था, उसने 2024 की 14 नवंबर को हुए संसदीय चुनाव में लगभग पूरे देश को लाल कर दिया। इस चुनाव में जेपीपी ने संसद की कुल 225 सीटों में से 159 सीट्स जीतकर दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया।
🔴 यह जीत कितनी जबरदस्त है इसका जायजा इन तथ्यों से समझा जा सकता है :
◾ पिछली संसद में जे पी पी के वाम गठबंधन को कुल 3.84% वोट मिले थे : इस बार उसे 61.56% वोट मिले।
◾ वोटों का यह परिवर्तन धमाकेदार था। कुल स्विंग 57.72 परसेंटेज पॉइंट्स वोटों की थी : इतने सारे लोग दूसरी पार्टियों से टूटकर वाम के साथ आये।
◾ यही स्विंग थी, जिसने पिछली संसद में जिस वाम के पास सिर्फ 3 सीट्स थीं, उनकी संख्या को 159 तक पहुंचाया।
🔴 इसे कहते हैँ खटिया खड़ी और बिस्तर गोल कर देना। मगर यह हुआ कैसे? इसकी क्रोनोलोजी समझ कर ही सही तरीके से समझा जा सकता है।
🔵 2009 में लिट्टे को कुचलने और प्रभाकरण को मार डालने के बाद पूरी श्रीलंका में नस्लीय और साप्रदायिक उन्माद उभरा, वहाँ की पार्टियों ने इसे उभारा और पूरी राजनीति इसी मुद्दे पर अटका कर रख दी गयी।
🔵 कभी इधर, कभी उधर, थोड़े बहुत व्यवधान के साथ राजपक्षे परिवार की सरकार चली। इधर फलाने राजपक्षे, उधर अलाने राजपक्षे, तो विधर ढिकाने राजपक्षे : इन सत्तासीन मदमस्तों ने अपनी तुगलकी नीतियों से खेती-किसानी चौपट कर दी, मजदूरों पर कटौटियां थोप दीं, बेरोजगारी और महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और भ्रष्टाचार पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
🔵 इस सबके खिलाफ जनता का गुस्सा ट्रेड यूनियनों, किसान और जनवादी संगठनों की अगुआई में मैदान में लडता भिड़ता रहा। विराट लामबंदियां हुईं, देशव्यापी हड़ताले हुईं। मई 2022 से यह आंदोलन तेज से तेजतर होता गया।
🔵 यही गुस्सा था, जो 10 जुलाई 2022 में जनता द्वारा श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन पर कब्जे तक जा पहुँचा। सरकार उखाड़ने, राजपक्षे की खाट खड़ी करने के बाद भी ज़नआंदोलन रुके नहीं : बिस्तर गोल करने तक चलते रहे। जनता के कब्जे को 23 सितम्बर को युवा वामपंथी दिसानायके को जिता कर राष्ट्रपति भवन में बिठाकर कब्जे को वास्तविक बना दिया।
🔵 22 सितम्बर को पार्लियामेंट भंग करके नए चुनाव का एलान हुआ और 14 नवम्बर को बिस्तर भी गोल कर दिया गया। श्रीलंका लाल हो गया।
*सबक*
श्रीलंका के सबक तीन हैँ :
🔺 *एक* : परिवर्तन 1-2-3-4 के सरल गणित में नहीं होता, गुणनफल वाले गणित में 4-16-64-256-1024-4096, कई बार इससे भी अधिक सरपट 100¹⁰⁰ की गति से होता है।
🔺 *दो* : बदलाव का इन्तजार आराम से, अपने आप हो जाने से नहीं होता, जब बदलाव आये तो हमें जगा लेना कहकर खर्राटे मारते हुए सो जाने से नहीं होता। यह तब होता है जब आवाज उठाई जाती है, लड़ाई लड़ी जाती है और हर तरह की जोखिम उठाते हुए मुसलसल तेज से तेजतर करते हुए आगे बढ़ाई जाती है।
🔺 *तीन* : और यह काम कोई ऊपर-वूपर, नीचे-वीचे से आकर नहीं करता। खुद करना होता है और सिर्फ दिल्ली, भोपाल, लखनऊ, पटना, रायपुर में जाकर करने भर से नहीं होता। इसे अपने गाँव, टोले, मजरे, पुरे, बस्ती, मोहल्ले, खदान, कारखाने, काम के ठीये पर शुरू करना होता : बूँद बूँद को जोड़कर समंदर बनाते हुए उसे लुटेरों को उखाड़ने वाली सुनामी में बदलना होता है।
*क्योंकि* : *राहत इंदौरी* साहब के शब्दों में ही कहें तो :
*न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।*
*(टिप्पणीकार ‘लोकजतन’के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)*
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