बुरा ना मानो होली है : होलियाना चिंतन:- एक ओर ‘NDA’ की पिचकारी, दूसरी ओर ‘INDI’ की लाचारी
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विश्वगुरु की होली
नाव का रीजन,होली का सीजन,
होली के रंग होली की भंग और होली की तरंग है
एक ओर ‘चार सौ के पार’ वाले रंगों की बौछार
दूसरी ओर आपसी ‘रार’ तकरार’ है और ‘कन्फ्यूजन’ की ‘भरमार’
एक ओर ‘एनडीए’ की पिचकारी,
दूसरी ओर ‘इंडी’ की लाचारी
एक के पास ‘फिर एक बार, मोदी सरकार’अबकी बार चार सौ पार’ का राग
तो दूसरे के पास सिर्फ खिसियाहट का ‘झाग’
सत्ता के पास योजनाओ भरा ‘गुलाल’ है,
विपक्ष के पास सिर्फ ‘मलाल’ है, इसीलिए उसकी बिगड़ी चाल है
साढ़े पांच सौ साल बाद एनडीए के ‘रघुवीरा’ के हाथ में पिचकारी आई है
वे अपने लाखों-करोड़ों भक्तों से रोज होली खेल रहे हैं।
सदियों से विस्थापित रघुवीरा अपने मंदिर में स्थापित हो चुके हैं
ईर्ष्या-द्वेष व नफरत रूपी ‘होलिका’ अपनी ही आग में जल चुकी है
‘प्रह्लाद’ रूपी भक्त जलने से बच गए हैं और सब मिलकर होली गा रहे हैं-
आज अवध में होरी रे रसिया…
आज बिरज में होरी रे रसिया…
होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा…
हुरियारे गा रहे हैं। नाच रहे हैं। खुशी के ‘मंजीरे’ और ‘चंग’ बज रहे हैं, मोदी की ‘भंग’ का ‘रंग’ चढ़ रहा है।
एक ओर रघुवीरा और नंदलाल होली खेल रहे हैं,
दूसरी ओर तरह-तरह के छंदलाल, फंदलाल और धंधलाल होली खेल रहे हैं
रघुवीरा और नंदलाल के पास विकास की पिचकारी है, रंग है, भंग है, चंग है, बजाने का ढंग है,
लेकिन छंदलाल, फंदलाल और धंधलालों के पास ऐसी लाचारी है,न पिचकारी है न रंग है, न चंग है, न बजाने का ढंग है
रघुवीरा नंदलाल एक से एक ‘रंग’ मारते हैं,
लेकिन छंदलाल सिर्फ ‘रंग में भंग’ डालते हैं!
एक ‘भिगोता’ है, दूसरा ‘रोता’ है
यह होली सनातन के रंग हैं, चंग है, ढंग है
लेकिन छंदलालों की होली ‘बदरंग’ है
एक दस साल से ‘रंग’ खेल रहे हैं,
दूसरे दस साल से ‘तंग’ फील कर रहे हैं
छंदलालों के लिए होली ‘हिंदू’ है, ‘हिंदुत्व’ है, ‘कम्यूनलिज्म’ है, ‘तानाशाही है, फासिज्म है,
होली भारत का ‘कल्चरल जनतंत्र’ है,बराबरी का विधान है, समानता का अनुष्ठान है,एक परंपरागत सांस्कृतिक वितान है,
जिसमें मोदी के विकास की लंबी तान है, मोदी का ‘फ्यूचरिस्टिक गान’ है,
जो मोदी की ‘आन’ ‘बान’ ‘शान’ है
जो मोदी की ‘जान’ है,
जो मोदी का ‘कर्म’ है,‘मर्म’ है, ‘धर्म’ है
विपक्ष के लिए यह सब ‘शर्म’ है
मोदी के गोपी-ग्वाल-बालों और हुरियारों के लिए होली ‘मस्ती का त्योहार’ है, ‘मुहब्बत की सरकार’ है,
जिसमें राजा-रंक सब बराबर हैं, जिसमें अकबर, बीरबल, पद्माकर और नजीर खेलते हैं
होली का राष्ट्रगीत ‘बुरा न मानो होली है’ जो सबकी ‘परमानेंट ठिठोली’ है, प्यार की बोली है,
लेकिन कुछ के लिए यह हिकारत भरी ‘गाली’ है!
ऐसी होली ही नफरतियों का इलाज है। मेंटलों, बीमारों की ‘कल्चरल थिरेपी’ है। वह मन के मैल-कुचैल को बाहर निकालती है। नफरतिए मन को स्वस्थ करती है…
क्योंकि गिले-शिकवे भूल कर दोस्तो, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं…
होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों से रंग मिल जाते हैं…
होली मुहब्बत की कल्चर है, जो उसके निंदक हैं, वही उसके ‘वल्चर’ व ‘खलचर’ हैं!
होली ही मुहब्बत की ‘परमानेंट दुकान’ है, बाकी सब ‘फीका पकवान’ है।
जो होली खेले, वही उसका ‘जिजमान’ है। होली है तो हिंदुस्तान है, वरना सब ‘श्मशान’ है।
एक ‘मीडिया हाउस’ के कॉन्क्लेव में आकर मोदी मस्त होली खेलते हैं!
जैसे ही ‘विकास की होली’ का गीत शुरू करते हैं,
अपनी भावी विकास योजनाओं की पिचकारी चलाते हैं,
वैसे ही सारे लोग भावविभोर ताली बजाने लगते हैं और मोदी-मोदी…गाने लगते हैं।
ये है मोदी की होली!
इसे देख, निंदकजन निंदा की पिचकारी चलाते हैं
कि ‘बेरोजगारी, ‘महंगाई और ‘निरंकुशता’ की बहार है, यह ‘वसूली सरकार’ है,
कहते है इनसे जनता नाराज है, ये 2024 में जा रही है और आ रही हमारी सरकार है!
मोदी अपनी ही पिच और अपनी पिचकारी से अपनी विकास योजनाओं का ‘अमृत’ बरसाते हैं और उधर सारी जनता ‘मोदी-मोदी’ चिल्लाने लगती है। लगता है कि मोदी सचमुच ‘दुर्जेय’ हैं।
सभा हो या मीडिया, मोदी अपनी लागू की गई योजनाओं-
जैसे साठ करोड़ जन-धन खाते,
सोलह करोड़ उज्ज्वला गैस कनेक्शन,
इतने ही इज्जत घर,
करोड़ों पक्के मकान,
अस्सी करोड़ को फ्री राशन,
हर राज्य में फर्स्ट क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, मुद्रा योजना और अन्य सैकड़ों कल्याणकारी योजनाएं
आगामी वर्षो में भारत को ‘दुनिया की तीसरी इकनॉमी’ बनाने के अपने संकल्पों के बारे में बताते हैंऔर सामने बैठा हर देवी-देवता ‘तीसरी बार मोदी सरकार’ के नारे लगाने लगता है…।
एक जमाने में कहा जाता था ‘बैनेटन के रंग…’
आज कहा जाता है ‘मोदी के रंग मोदी के संग!’
2014 चुनाव में,
मोदी आया तो ‘अच्छे दिन आएंगे’ वाली पिचकारी से खेले।
2019 चुनाव में
‘मोदी है, तो मुमकिन है’ की पिचकारी से खेले
आए और हर चीज ‘मुमकिन’ कर दी, लोग मोदी-मोदी का ‘फाग’ गाते रहे!
अब, 2024 में
मोदी की ‘गारंटी वाली गारंटी’ और ‘मेरा भारत मेरा परिवार’ की पिचकारियां लेकर भावी योजनाओं में अपने विकास के रंगों को भर रहे हैं और लोग न्योछावर हुए जा रहे हैं और मानकर चल रहे हैं कि 2024 में मोदी ही आ सकते हैं, और मोदी ही आ रहे हैं…।
वही विपक्ष को ‘चुनावी बॉन्ड’ वाली पिचकारी मिल जाती है और वह मोदी से होली खेलने लगता है
कि इतने बॉन्ड कहां से आए…
देने और लेने वाले के बीच क्या लेन-देन हुआ…
मोदी तुरंत अपनी ‘फ्यूचरिस्टिक पिचकारी’ लेकर आते हैं और भारत को एक ‘विकसित राष्ट्र’ बनाने का प्लान बताकर आश्वस्त करते हैं कि आने वाले बरसों में अपना भारत ‘विकसित राष्ट्र’ बन जाएगा और दुनिया के बड़े से बड़े देश से आंख मिलाकर बराबरी की होली खेलने लगेगा।
यही विश्वगुरु का रंग है, विश्वगुरु की तरंग है। विश्वगुरु की चंग है। विश्वगुरु का ढंग है। यही विश्वगुरु की होली है।
ट्रंप बाइडन से खेल रहे हैं और मोदी विपक्ष से खेल रहे हैं!
यही मोदी की गारंटी की गारंटी है, जबकि
विपक्ष के लिए यह सब खतरे की ‘घंटी’ है!
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